‘ये’ हैं वह 5 मुख्य कारण, जिनके कारण बीजेपी की झारखंड से हुई ‘विदाई’

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एन पी न्यूज 24 – आज  झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणामों ने एक ओर झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन के लिए सत्ता की रह प्रशस्त कर दी है, वहीं दूसरी ओर इन नतीजों ने भाजपा की झारखंड से विदाई तय कर दी है. इस चुनाव में क्षेत्रीय दल आजसू और जेवीएम ने भी काफी अच्छा प्रदर्शन किया है. वहीं भाजपा की इस शिकस्त से कई बातें जोड़ कर देखी जा रही है, उनमें से एक है आजसू और भाजपा का अलग-अलग चुनाव लड़ना. इसके अलावा राजनीती विशेषज्ञों ने कुछ ऐसे और भी कारण गिनाएँ हैं, जिनकी वजह से भाजपा ने अब महाराष्ट्र के बाद झारखंड से भी सत्ता से हाथ धो लिया है. जानते हैं क्या हैं वह कारण…

झारखंड चुनाव के नतीजे सत्ता से बीजेपी के विदाई के संकेत दे रहे हैं. रुझानों में महागठबंधन को जनता का शानदार समर्थन मिलता दिख रहा है. चुनाव से पहले मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अबकी बार 65 पार का नारा दिया था, लेकिन इस चुनाव में सीएम का यह नारा ध्वस्त होता दिख रहा है. ताजा रुझानों में बीजेपी 65 तो दूर, इसके आधे के करीब भी नहीं दिख रही है.

रघुवर दास से गहरी नाराजगीगैर आदिवासी चेहरा खारिज

बता दें कि राज्य में पिछले 5 सालों में ऐसे कई घटनाएं हुई हैं, जिनके बाद से राज्य की जनता मुख्यमंत्री से नाराज चल रही थी. इनमें से 15 नवंबर 2018 को झारखंड के स्थापना दिवस के अवसर पर  प्रदर्शन कर रहे पारा शिक्षकों पर लाठी चार्ज का मामला एक है. इस घटना में कई शिक्षक घायल हो गए थे, जबकि एक शिक्षक की मौत भी हो गई थी.

फिर इस साल सितंबर में भी आंगनबाड़ी सेविका और सहायिकाओं पर पुलिस दवारा लाठीचार्ज की कार्रवाई की गई. इसके बाद काश्तकारी कानून (CNT एक्ट) में बदलाव और जल-जंगल और जमीन आदि मुद्दे ऐसे रहे, जिनके बाद राज्य की जनता ने गैर आदिवासी चेहरे को उखाड फेंका.

बता दें कि 2014 के विधानसभा सभा चुनाव में बीजेपी ने 37 सीटें जीत हासिल की थी.

राष्ट्रीय के बदले स्थानीय मुद्दों का जोर

सरकार राज्य के युवा-बेरोजगारों को खुश करने में नाकामयाब रही. सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान एक बार भी राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा का आयोजन नहीं किया. इतना ही नहीं पूरे 5 सालों में बेरोजगार नौकरी की मांग करते रहे और हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर भी हंगामा होता रहा.

AJSU और बीजेपी के बीच टकराव

झारखंड चुनाव से पहले ही बीजेपी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (AJSU) और भाजपा का रिश्ता टूट गया, जबकि दोनों ही पार्टियां सत्ता में काबिज थी. AJSU ने चुनाव लड़ने के लिए अधिक सीटों की मांग भाजपा के सामने रखी, लेकिन भाजपा ने इससे इंकार कर दिया. नतीजतन AJSU ने अपनी अलग राह अलग कर ली, जिसका खामियाजा अब भाजपा को भुगतना पड़ रहा है. चर्चा थी कि भाजपा ने ओवर कांफिडेंस में आकर AJSU को मनाने की कोशिश नहीं की.

यही नहीं एनडीए के मुख्य सहयोगी रामविलास पासवान ने भी अपनी लोक जनशक्ति पार्टी को लेकर अकेले मैदान में उतरे. इस कारण वोट बंट गए.

सरयू राय की बगावत से गलत संदेश

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले सरयू राय और सीएम रघुवर दास के रिश्ते कड़वाहट भरे रहें. इसी के चलते रघुवर सरकार ने उन्हें विधानसभा चुनाव टिकट नहीं दिया. इसलिए वह जमशेदपुर पश्चिम सीट से चुनाव लड़ते रहे. हालाँकि रघुवर सरकार के बारे में जनता के बीच संदेश गया कि सरकार ईमानदार नेता को टिकिट नहीं दिया.

बता दें कि सरयू राय ने बिहार और झारखंड में कई घोटालों पर से पर्दा उठाया था, जिसमें चारा घोटाला  और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को जेल भिजवाना शामिल है.

पार्टी नेताओं को नाराज करना

भाजपा ने दूसरी पार्टी से अपनी पार्टी में आए बागी नेताओं को खुश करने के लिए उन्हें टिकिट दिए. नतीजतन उन सीटों पर चुनाव लड़ने वाले नेताओं के टिकिट कट गए. इसलिए फिर बाद में वे बागी बन गए. किसी ने पार्टी छोड़ दी, तो किसी ने चुपके से किसी और पार्टी को समर्थन दिया, तो किसी ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा. हालाँकि बीजेपी ने 15 दिसंबर को ऐसे बागी नेताओं पर कार्रवाई की थी और 11 नेताओं को 6 साल के लिए पार्टी से बाहर निकाल दिया था.

लेकिन झारखंड में पार्टी और नेताओं के बीच पड़ी दरार को भरने में भाजपा नाकामयाब रही, जिसका खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है.

बता दें कि बीजेपी ने जिन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की है उनमें  प्रवीण प्रभाकर, जामताड़ा से तरुण गुप्ता, जरमुंडी से सीताराम पाठक, नाला से माधव चंद्र महतो, बोरियो से पूर्व अध्यक्ष ताला मरांडी, राजमहल से नित्यानंद गुप्ता, बरहेट से गेम्ब्रिएम हेम्ब्रम और लिली हांसदा, शिकारीपाड़ा से श्याम मरांडी, दुमका से शिव धन मुर्मू और जरमुंडी से संजयनन्द झा के नाम शामिल हैं. इन सभी पर विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुँचाने का आरोप है.

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