महाराष्ट्र में बनी BJP-NCP की सरकार, क्या दलबदल कानून फंसा देगा पेंच?

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मुंबई: एन पी न्यूज 24 – आज (शनिवार) सुबह से पूरे राज्य सहित देशभर में महाराष्ट्र की राजनीती में आई उथल-पूथल को लेकर चर्चा हो रही है. राज्य में रातोंरात सरकार बनाने के समीकरण बदल गए. कल रात को शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की मीटिंग में सरकार बनाने की रणनीति बना रहे, अजीत पवार ने सुबह होते ही सबको झटका दे दिया और बीजेपी के साथ सरकार बना ली. हर कोई इससे बेखबर था कि अजीत पवार और बीजेपी रातोंरात मिलकर राजनीती कि क्या बिसात बिछाने जा रही है.

हालाँकि अब राज्य को मुख्यमंत्री के रूप में बीजेपी केदेवेंद्र फड़नवीस और उपमुख्यमंत्री  के तौर पर राकांपा नेता अजीत पवार मिल गए हैं. दोनों ने आज सुबह आन-फानन में राज्यपाल के सामने अपने-अपने पदों की शपथ ले ली है. वहीं दूसरी ओर शिवसेना और कांग्रेस देखती रह गई और उनके हाथ से सरकार फिसल गई. वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने अपना पला झाड़ते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इस फैसले के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

बताया जा रहा है कि अजित पवार के पास कुल 20 से 25 विधायकों का समर्थन है. ऐसे में साफ दिखाई दे रहा है कि NCP अब दी खेमों में बंट सकती है. वहीं अजीत पवार के फैसले पर शरद पवार भी नाराजगी जता रहे हैं. इसलिए इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए यह चर्चा हो रही है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी इसका विरोध भी दर्ज करा सकती है.

क्या करेगी एनसीपी?

NCP में उपजी वर्तमान परिस्थितियों और अपने विधायकों के टूटने पर NCP कोर्ट की शरण में जा सकती है. इसलिए हो सकता है यह राजनितिक मामला दल-बदल कानून में फंस सकता है.

बता दें कि वर्तमान दल-बदल कानून के अनुसार यदि एक पार्टी के सदस्य अगर दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहते हैं तो कम से दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. बीते विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की 54 सीटें आई थीं. सीटों की संख्या और मौजूदा कानून के अनुसार यदि अजित पवार को बीजेपी में शामिल होना है, तो उन्हें कुल 41 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी. लेकिन उनके हालिया दावे के अनुसार उनको केवल 20 से 25 विधायकों का ही समर्थन प्राप्त है. बता दें कि सदन में बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर तक का समय दिया गया है.

वर्तमान दल-बदल कानून

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची को दल बदल विरोधी कानून कहा जाता है. इसे 1985 में 52वें संशोधन के साथ संविधान में शामिल किया गया था. इस कानून को बनाने का तब विचार आया था जब राजनीतिक लाभ के लिए लगातार सदस्यों को बगैर सोचे समझे दल की अदला बदली करते हुए देखा जाने लगा.

इसके साथ अवसरवादिता और राजनीतिक अस्थिरता बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, साथ ही जनता के जनादेश की अनदेखी भी होने लगी. इस कानून के तहत-कोई सदस्य सदन में पार्टी व्हिप के विरुद्ध मतदान करे/ यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से त्यागपत्र दे/ कोई निर्दलीय, चुनाव के बाद किसी दल में चला जाए/ यदि मनोनीत सदस्य कोई दल ज्वाइन कर ले तो उसकी सदस्यता खत्म हो जाएगी.

इन सबको आधार मानते हु साल 1985 में इससे संबंधित कानून बनाया गया. लेकिन फिर भी नेताओं कि अदला बदली नहीं थमी. इसके बाद फिर इस कानून में संशोधन किए गए, जिसके अनुसार 2003 में यह तय किया गया कि सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं, अगर सामूहिक रूप से भी दल बदला जाता है तो उसे असंवैधानिक करार दिया जाएगा. इसके अलावा इसी संशोधन में धारा 3 को भी खत्म कर दिया गया जिसके तहत एक तिहाई पार्टी सदस्यों को लेकर दल बदला जा सकता था. अब ऐसा कुछ करने के लिए दो तिहाई सदस्यों की रज़ामंदी की जरूरत होगी.

अब यह प्रावधान महाराष्ट्र की मौजूदा राजनितिक स्थिति पर पूरी तरह से फिट बैठ रहा है, जो सदन में किसी भी पार्टी के दो तिहाई से कम विधायकों को तोड़ने से रोकता है. हालाँकि अब यह देखने वाली बात होगी कि शरद पवार, अपने भतीजे अजीत पवार द्वारा अपनाए गए बागी तेवर और अपने विधायकों को तोड़ने के खिलाफ क्या रुख अपनाएँगे.

बता दें कि शिवसेना के नेता संजय राउत ने इस मामले को लेकर शरद पवार को क्लीन चिट दे दी है. उन्होंने कहा कि शरद पवार को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी.

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