शिक्षा का मायका पुणे में बदहाली का शिकार बन रहे छात्र

पॉकेट मनी, जरूरी सामान भी खत्म; घर भी नहीं लौट सकते

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पुणे। एन पी न्यूज 24 – कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए पुणे समेत पूरे देश में 21 दिन तक लॉक डाउन घोषित किया गया है। कामकाजी लोगों को वर्क फ्रॉम होम करने की हिदायत दी गई है। जीवनावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर लॉक डाउन का कोई असर नहीं होगा, ऐसा प्रशासन और सरकार द्वारा लगातार कहा जा रहा है। इसके बावजूद लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका गहरा असर हुआ है। इसमें से दूरदराज से पढ़ाई के लिए पुणे में आये विद्यार्थियों के हाल बेहाल हैं। कई विद्यार्थी ऐसे भी हैं जो अपने घर भी नहीं जा पाए। कम पॉकेट मनी और जरूरी सामान खरीदने के लिए कोई माध्यम न होने से इन छात्रों पर मुसीबत आ पड़ी है।
ऑक्सफोर्ड ऑफ ईस्ट कहे जाने वाले पुणे में जो छात्र अपने घर नहीं जा पाए, वे बस दिन गिन रहे हैं कि ये लॉकडाउन जल्द ही खत्म हो जाए। घर से दूर होने की वजह से कुछ को आत्महत्या करने के विचार भी आ रहे हैं। नवी पेठ स्थित एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ने वाली 27 साल की दीपाली पाटिल कहती हैं, कई विद्यार्थी 11-12 मार्च को ही चले गए थे। मैंने अपनी रूममेट के साथ यहीं रुकने का फैसला किया, क्योंकि हम दोनों को पढ़ाई करनी थी लेकिन ये नहीं सोचा था कि हालात इतने खराब हो जाएंगे। कुछ ग्रुप हैं जो हमें खाना दे रहे हैं लेकिन ज्यादातर हम लोग नूडल्स और बिस्किट पर गुजर-बसर कर रहे हैं।
दीपाली कहती हैं, ‘कभी-कभी बहुत अकेला महसूस होता है और परिवार के साथ रहने का मन होता है। दिमाग में सूइसाइड विचार आ रहे हैं लेकिन एमपीएससी की तैयारी कर रहे बाकी साथियों से मुझे काफी सहयोग मिल रहा है इसलिए मैं रिकवर कर रही हूं। जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया, उस दिन मैं टूट गई। शनिवार पेठ में रहने वालीं दूसरी छात्रा अदिति काले ने बताया, हम घर से बाहर निकलने में भी डर रहे हैं क्योंकि हमने कई ऐसे विडियो देखे जिसमें पुलिस युवाओं को पीट रही है। ज्यादातर ग्रॉसरी की दुकानें बंद हैं और हमें फूड आइटम भी नहीं मिल रहे हैं। मुझे टेंशन है कि आगे कैसे मैनेज होगा सब।
कुछ समाजसेवी संस्था- संगठन इन छात्रों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पुलिस की इजाजत अभी नहीं मिली है। वे लोग फूड पैकेट सप्लाइ करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं दिन भर के खाने के लिए यह काफी नहीं हो पा रहा है। कुल मिलाकर शिक्षा का मायका कहे जाने वाले पुणे में विद्यार्थी वर्ग की हालत खराब है। पैसों और जीवनावश्यक वस्तुओं के अभाव में वे बिस्कुट और मैगी से पेट भरने के लिए विवश हैं। कुछ तो इस कदर टूट गए हैं कि उनके दिमाग में खुदकुशी जैसा विचार भी आ गया है। साइकॉलजिस्ट हिमांशू चौधरी ने बताया, ‘इस तरह की परिस्थिति में युवा कुछ ज्यादा सोच लेते हैं, ऐसे में नकारात्मक विचार आते हैं। इसके लिए योगा, मेडिटेशन या फिर फाइन आर्ट के जरिए खुद को व्यस्त किया जा सकता है और यह शरीर के लिए फायदेमंद भी है। संगीत से भी आराम मिलेगा।’
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