महाराष्ट्र-हरियाणा विधानसभा 2019 : चुनावों से कांग्रेस को लेना चाहिए ‘ये’ सबक

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मुंबई : एन पी न्यूज 24 – महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के कल नतीजे आ गए हैं। दोनों राज्य में बीजेपी की स्थिति अलग है। हरियाणा में कांग्रेस और बीजेपी में कड़ी टक्कर देखने को मिली तो वहीं महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना मिलकर सरकार बनाती दिख रही है। चुनाव आयोग के अब तक के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में बीजेपी 105 शिवसेना 56, कांग्रेस 44 और एनसीपी 54 सीटों पर जीत चुकी है।

बात करें हरियाणा कि तो वहां बीजेपी को 40, कांग्रेस 31, जेजेपी को 10 सीटें मिली है। हरियाणा के चुनाव नतीजे से सब हैरान है। वहां किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि क्षेत्र पार्टी जेजेपी 10 सीटों की बढ़त बना पायेगी। जबकि कांग्रेस की स्थिति 31 सीटें जीतना अच्छा माना जा रहा है। बात करें महाराष्ट्र की तो यहां भी एनसीपी और कांग्रेस ने बीजेपी-शिवसेना के साथ अच्छा मुकाबला किया। दोनों राज्यों में कांग्रेस को जगा दिया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को इन चुनावों से सबक लेने की जरुरत है।

स्‍थानीय नेताओं को समझे –
दोनों ही राज्‍यों में चुनावों ने स्‍थानीय नेताओं के महत्‍व को एक बार फिर स्‍थापित कर दिया है। इन स्‍थानीय नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्‍व पर निर्भर ना होकर अपने बूते पर ही चुनाव में अच्‍छा प्रदर्शन किया। महाराष्‍ट्र में तो कांग्रेस अदृश्‍य और नेतृत्‍वहीन ही दिखी। जबकि महाराष्‍ट्र की राज्‍य इकाई गुटबाजी के कारण कमजोर हुई।

सही व्यक्ति को दे जिम्मेदारी –  
हरियाणा में पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पास जाट समुदाय से ही होने का फायदा रहा. एक ओर जहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाट समुदाय का समर्थन लेने में सफल रहे, वहीं कुमारी शैलजा को चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाने का भी फायदा पार्टी को मिला। कांग्रेस कुमारी शैलजा के जरिये गैर जाट वोट लेने में सफल रही। उनके जरिये कांग्रेस अनुसूचित जाति के मतदाताओं तक भी पहुंची।

इसके अलावा पार्टी को मुद्दों पर त्‍वरित फैसला लेना होगा। जानकारों की मानें तो अशोक तंवर को राज्‍य पार्टी अध्‍यक्ष पद से पहले ही हटा देना चाहिए था और कुमारी शैलजा को यह पद दे देना चाहिए था। तंवर को तत्‍कालीन कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने नियुक्‍त किया था।  लेकिन, इस निर्णय के खिलाफ राज्‍य इकाई में विरोध हुआ था। पार्टी से इसको नजरअंदाज किया था।

नेतृत्‍व को लेकर करना होगा निर्णय –  
कांग्रेस के लिए इन चुनावों में तीसरा अहम सबक पार्टी नेतृत्‍व के संबंध में है। कुछ महीने पहले पार्टी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्‍यक्ष के रूप में चुना था।  लेकिन, इन चुनावों में सोनिया गांधी की ओर सक एक भी चुनाव अभियान या रैली नहीं की गई। पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने हरियाणा में महज दो रैलियां कीं। पार्टी के अधिकांश बड़े नेता चुनावी अभियान से दूर रहे। इन अभियानों को राज्‍यों के नेताओं ने ही संभाला।

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