वायरस दिलो-दिमाग पर…सामाजिक चुनौती बने कोरोना को हराने के लिए खुद को बदलना होगा

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नई दिल्ली : एन पी न्यूज 24 – कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से पूरी दुनिया लगभग थम सी गई है। ये समाप्त होने में बहुत समय लगेगा, ऐसा अनुमान है कि इसमें शायद साल भर भी लगे। हालांकि, यह भी साफ़ है कि सब कुछ बंद करने की नीति बड़े तबके के लिए लंबे समय तक संभव नहीं है। सामाजिक और आर्थिक नुक़सान तो विध्वंसकारी हैं ही। दुनिया के देश अब ‘एग्ज़िट स्ट्रेटेजी’ चाहते हैं ताकि प्रतिबंध हटाए जाएं और सब सामान्य हो सके। लेकिन यह भी सच है कि कोरोना वायरस ग़ायब नहीं होने जा रहा है, अगर आप प्रतिबंध हटाते हैं तो वायरस लौटेगा और मामले तेज़ी से बढ़ेंगे।

सराहनीय पहल : कोविड-19 एक नया वायरस है। इसका अब तक कोई टीका नहीं बना है। लेकिन बुनियादी स्वच्छता और रोकथाम के उपाय बहुत मायने रखते हैं। भारत में केरल की काफी प्रशंसा हुई है कि उसने कोविड-19 के मामलों को कैसे संभाला है।  अगर इस वायरस का संक्रमण सामान्य आबादी में फैलता है, तो रोकथाम के उपाय बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं, क्योंकि ज्यादातर राज्यों में स्वास्थ्य प्रणाली उतनी मजबूत नहीं है। तेज शहरीकरण ने कमजोर शहरी स्वास्थ्य प्रणालियों पर जिस तरह दबाव बनाया है, उसमें महामारी को कैसे रोकना है, सिर्फ यह जानना पर्याप्त नहीं है, लगातार सतर्कता और क्रियान्वयन ही सब कुछ है।

राहत भरी बात : विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि लोग भीड़ में जाने से बचें, और यदि वे संदिग्ध मरीज के रूप में अलग-थलग रखे गए हैं, तो लंबे समय तक सुरक्षित रहने वाले खाद्य पदार्थ इकट्ठा कर लें, घर पर रहें तथा बीमार होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।  सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त आईसीयू हैं और न ही वेंटिलेटर, इसलिए गरीब लोग इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।’ अभी तक वायरस के सामुदायिक स्तर पर प्रसार की पुष्टि नहीं हुई है। यानी सामान्य आबादी में वायरस की पहचान नहीं हुई है।

धनी-गरीब की है यहां बड़ी खाई : सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में अब तक बहुत से लोगों का परीक्षण ही नहीं किया गया है और इसके साथ शिक्षा, स्वस्थ आचरण के प्रति जागरूकता की कमी, गरीबी और देश के कई हिस्सों में कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली आने वाले दिनों में चुनौती होगी। बार-बार साबुन से हाथ धोना एक अच्छा उपाय हो सकता है, जिसे कोई व्यक्ति मानक स्वास्थ्य सावधानी के साथ कर सकता है। इस मामले में भी भारत की स्थिति चुनौतीपूर्ण है। अमीर और गरीब परिवारों के बीच भारी असमानता है। दस गरीब परिवारों में से केवल दो में ही हाथ धोने के लिए साबुन का प्रयोग होता है, जबकि दस अमीर परिवारों में से नौ में साबुन का इस्तेमाल होता है।

वैश्विक प्रतिक्रिया : यह एक बीमारी के ख़िलाफ़ बेजोड़ वैश्विक प्रतिक्रिया है, लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं कि आख़िर यह सब कहां जाकर ख़त्म होगा और लोग अपनी आम ज़िंदगियों में लौट पाएंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का मानना है कि ब्रिटेन अगले 12 हफ़्तों में इसके पर फ़तह पा लेगा और देश ‘कोरोना वायरस को उखाड़ फेंकेगा। एडिनब्रा विश्वविद्यालय में संक्रामक रोग महामारी विज्ञान के प्रोफ़ेसर मार्क वूलहाउस कहते हैं, “हमारी सबसे बड़ी समस्या इससे बाहर निकलने की नीति को लेकर है कि हम इससे कैसे पार पाएंगे। कोरोना वायरस इस समय की सबसे बड़ी वैज्ञानिक और सामाजिक चुनौती है। हालांकि, यह भी साफ़ है कि सब कुछ बंद करने की नीति बड़े तबके के लिए लंबे समय तक संभव नहीं है, सामाजिक और आर्थिक नुक़सान तो विध्वंसकारी हैं ही।

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