मृत मरीज के परिजनों को साढ़े चार लाख का रिफंड देने के आदेश

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पुणे।एन पी न्यूज 24 – सहायक धर्मादाय आयुक्त ने पुणे के एक मरीज की मौत के बाद रूबी हॉल क्लिनिक नामक हॉस्पिटल के खिलाफ असाधारण फैसला सुनााया है। उन्होंने हॉस्पिटल प्रबंधन को निर्देश दिया है कि वह मरीज के परिवार को उसके द्वारा लोन लिए गए साढ़े 4 लाख रुपये का भुगतान करे। मृतक की पत्नी ने क्लिनिक के खिलाफ धर्मादाय आयुक्त से शिकायत की थी।
गोखले नगर के रहने वाले विकी डोगरे को 11 दिसंबर को रूबी हॉल क्लिनिक में भर्ती कराया गया था। बीती 16 जनवरी को बीमारी से उनकी मौत हो गई। विकी के इलाज में 12.68 लाख रुपये का बिल आया था। इसमें से उनके परिवार ने कुछ का भुगतान कर दिया था जबकि 6.79 लाख रुपये बकाया थे। रूबी हॉल क्लिनिक के अधिकारियों ने सहायक धर्मादाय आयुक्त को बताया कि डोंगरे के परिवार ने उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी थी कि वे इंडिजेंट पेशेंट फंड (आईपीएफ) स्कीम के अंतर्गत आते हैं। इलाज के दौरान डोंगरे के भाई ने अस्पताल के बिल का भुगतान भी किया लेकिन डोंगरे के मौत के बाद वे लोग अस्पताल का बकाया बिल देने को तैयार नहीं हैं।
हॉस्पिटल प्रबंधन ने कहा कि इसके बाद मानवता के आधार पर अस्पताल ने उनका बकाया 6.79 लाख रुपये का बिल माफ भी कर दिया लेकिन वे लोग रिफंड की मांग करने लगे। यहां डोंगरे की पत्नी सारिका ने सहायक धर्मादाय आयुक्त से शिकायत की कि अस्पताल के अधिकारियों को आईपीएफ स्कीम के बारे में जानकारी देने के बाद भी उन्हें बिल का चुकाने को कहा गया। अब तक वह अपने पति के इलाज पर 20 लाख से ज्यादा खर्च कर चुकी हैं। इसके लिए उन्हें लोन भी लेना पड़ा। सारिका ने आरोप लगाया कि उनके पति की मौत के बाद अस्पताल ने बिल में छूट देने से इनकार कर दिया। उन्होंने अस्पताल को बताया कि उनके दो बच्चे हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन वे बात मानने की बजाय धर्मादाय आयुक्त के पास जाने को बोलते रहे।
दोनो पक्षों की बात सुनने के बाद सहायक धर्मादाय आयुक्त ने कहा किसी भी मरीज के भुगतान किए गए बिल को रिफंड नहीं किया जा सकता। हालांकि मृतक के दो बच्चे हैं, इसे देखते हुए मरीज के परिजन के साढ़े 4 लाख के लोन का भुगतान करने का निर्देश सहायक धर्मादाय आयुक्त ने दिया है। हालांकि, अस्पताल के प्रबंधन ने इस फैसले से नाराजगी जताई है। आईपीएफ का जेनुइन केस न होने के बावजूद उनके बिल का बड़ा हिस्सा अस्पताल की ओर से माफ कर दिया गया था। वैसे भी अगर उनके लोन को बैंक ने पास कर दिया था, तो इसका मतलब कि वे लोन चुकाने में सक्षम थे। मरीज के परिवार ने 6 लाख रुपये का बिल भुगतान कर दिया था, जिसके लिए वे रिफंड की मांग कर रहे हैं। गरीब मरीज के पास इतने पैसे नहीं होते और वे लोन भी नहीं ले सकते। लोन लेने वाला और लाखों का बिल जमा करने वाला गरीब नहीं हो सकता।
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