धरती के साथ-साथ सूरज भी लॉकडाउन में, भीषण ठंड, भूकंप और सूखे की आशंका, वैज्ञानिकों की चेतावनी

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नई दिल्ली : एन पी न्यूज 24 – कोरोना वायरस के कारण अधिकतर देशों में घोषित किए गए लॉकडाउन से न केवल पर्यावरण को फायदा पहुंचा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों का उत्सर्जन भी घटा है। इस बीच सूरज के लॉकडाउन में जाने से अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है। सूरज के लॉकडाउन में जाने से धरती पर भीषण ठंड, सूखा और भूकंप की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल वैज्ञानिकों ने सूरज को लेकर एक नई जानकारी दी है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, धरती को ऊर्जा देने वाला हमारा सूरज आजकल कम गर्म हो रहा है। इसकी सतह पर दिखने वाले धब्बे खत्म होते जा रहे हैं। या यूं कहें कि बन नहीं रहे हैं। इसकी वजह से वैज्ञानिक परेशान हैं। क्योंकि उन्हें आशंका है कि कहीं यह सूरत की तरफ से आने वाले किसी बड़े सौर तूफान से पहले की शांत तो नहीं है। सूरज का तापमान कम होगा तो कई देश बर्फ में जम सकते हैं। कई जगहों पर भूकंप और सुनामी आ सकती है। बेवजह मौसम बदलने से फसलें खराब हो सकती हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे सोलर मिनिमम का नाम दिया गया है। इसके अलावा सूर्य का मैग्नेटिक फील्ड भी पहले से कमजोर हुआ है। इसके कारण ही सूर्य के सतह पर कास्मिक रेज होती है और गर्म हवाएं चलती हैं। सूरज की सतह पर सोलर स्पॉट में वृद्धि देखी जा रही है।

एक खबर के मुताबिक, 17वीं और 18वीं सदी में इसी तरह सूरज सुस्त हो गया था। जिसकी वजह से पूरे यूरोप में छोटा सा हिमयुग का दौर आ गया था। थेम्स नदी जमकर बर्फ बन गई थी। फसलें खराब हो गई थीं। आसमान से बिजलियां गिरती थीं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी कहा है कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। किसी भी तरह का हिमयुग नहीं आएगा। एस्ट्रोनॉमर डॉ टोनी फिलीप्स ने कहा है कि हम सोलर मिनिमम की ओर जा रहे हैं और इस बार ये काफी गहरा रहने वाला है। उन्होंने कहा है कि सनस्पॉट बता रहे हैं कि पिछली सदियों की तुलना में ये दौर ज्यादा गहरा रहने वाला है। इस दौरान सूरज का मैग्नेटिक फील्ड काफी कमजोरो हो जाएगा, जिसकी वजह से सोलर सिस्टम में ज्यादा कॉस्मिक रे आ जाएंगे।

टोनी फिलीप्स ने कहा है कि ज्यादा मात्रा में कॉस्मिक रे एस्ट्रोनॉट्स के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक हैं। ये पृथ्वी के ऊपरी वातावरण के इलेक्ट्रो केमिस्ट्री को प्रभावित करेंगे। इसकी वजह से बिजलियां कड़केंगी। नासा के वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है कि ये डाल्टन मिनिमम जैसा हो सकता है। डाल्टन मिनिमम 1790 से 1830 के बीच में आया था। इस दौरान भीषण ठंड पड़ी थी, फसलों को काफी नुकसान पहुंचा था, सूखा और भयावह ज्वालामुखी फूटे थे। इस दौरान 20 वर्षों में तापामान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया। इसकी वजह से दुनिया के सामने अन्न का संकट पैदा हो गया था। 10 अप्रैल 1815 को 2000 वर्षों में दूसरा सबसे ज्यादा ज्वालामुखी फूटे। इंडोनेशिया में इसकी वजह से करीब 71 हजार लोग मारे गए। इसी तरह से 1816 में गर्मी पड़ी ही नहीं। इस साल को 1800 और ठंड से मौत का नाम दिया गया। इस दौरान जुलाई महीने में बर्फ गिरी। जानकारी के मुताबिक, इस साल सूरज ब्लैंक रहा है और इस दौरान 76 फीसदी वक्त में सन स्पॉट नहीं दिखा है। पिछले साल 77 फीसदी ब्लैंक था।

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