टीकमगढ़. एन पी न्यूज 24 – टीकमगढ़ जिले के गांव जुगया का रहने वाला दयाराम कुशवाहा दिल्ली में खुश था। उसे इमारत निर्माण में नौकरी मिल गई थी। पत्नी ज्ञानवती भी दिल्ली ही आ गई थी और वह पति के साथ ही काम करती थी। दोनों ऊंची इमारतों के निर्माण में ईंट ढोने का काम करते थे। लॉकडाउन के बाद दयाराम को काम मिलना बंद हो गया था और परिवार के लिए खाने का इंतजाम करना और रेंट देना मुश्किल था। वाहनों के बंद होने से आवागमन का साधन नहीं रह गया। दयाराम ने हिम्मत जुटाई और पैदल ही गांव चलने का फैसला कर लिया। अपने 5 साल के बेटे को कंधे पर बिठाकर वह 26 मार्च को पत्नी के साथ वह दिल्ली से निकल पड़ा। करीब 500 किमी की दूरी कम नहीं थी, लेकिन 28 साल का दयाराम आखिर करता भी तो क्या? बीच में हार जाता तो 7 साल के दूसरे बेटे को याद करने लगा, जिसे गांव में ही छोड़ दिया था। फिर अनायास ही कदम बढ़ जाते थे। आखिरकार चार दिनों तक लगातार चलने और कुछ ट्रक में लिफ्ट लेने के बाद वे मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के गांव जुगया पहुंच ही गए।
बस, पैसा ही ले जाता है दिल्ली : गांव में दयाराम का 2 कमरों का पक्का मकान है। दिलचस्प बात है कि उनके घर में एक सुंदर सा पोस्टर लगा है जिस पर लिखा है- ‘मैं समय को पीछे ले जाना चाहता हूं, जब लोग छोटे से गांव में रहा करते थे और एक दूसरे का ख्याल रखते थे। वह कहता है ऐसा नहीं है कि मैं दिल्ली से प्यार करता हूं. मुझे जीने के लिए पैसे की जरूरत है। अगर हमारे पास गांव में पैसे होते तो हमलोग यहीं रहते। यह हमारा घर है।
अपनों के बीच बेगाना : दयाराम और दिल्ली से गांव पहुंचे अन्य लोगों को इस बात का डर है कि उनके पुराने दोस्त उन पर शक न करने लगें कि कहीं हमलोग संक्रमण फैला देंगे। कोरोना वायरस की त्रासदी ने उन्हें अपने ही गांव में बाहरी व्यक्ति बना दिया है। हालांकि, गांव पहुंचने के कुछ दिनों बाद दयाराम, ज्ञानवती और अन्य रिश्तेदारों को गेहूं की कटाई का काम मिल गया।