वाशिंगटन. एन पी न्यूज 24 – दुनिया अभी चीन से फैले कोरोना संक्रमण में ही उलझी है कि एक और बड़ी खबर चीन से आ रही है। अमेरिका ने शक जताया है कि चीन अब छोटा बम बना रहा है। उसने चोरी-छिपे जीरो ईल्ड न्यूक्लियर टेस्ट किया है। अमेरिका ने कहा है कि तरह से चीनी सरकार अपने जखीरे का आधुनिकीकरण कर रही है, यह चिंताजनक है और इससे पता चलता है कि क्यों चीन को इंटरनेशनल आर्म्स कंट्रोल फ्रेमवर्क के अंतर्गत लाना चाहिए।’ दूसरी ओर 300 न्यूक्लियर हथियारों के मालिक चीन ने हमेशा इस बात का खंडन किया है। उसका कहना है कि उसकी न्यूक्लियर फोर्स डिफेंस के लिए है और उससे कोई खतरा नहीं है।
जानें, क्या है वह छोटा बम : बता दें कि जीरो ईल्ड ऐसा न्यूक्लियर टेस्ट होता है, जिसमें कोई एक्सप्लोसिव चेन रिएयक्शन नहीं होता है जैसा न्यूक्लियर हथियार के डिटोनेशन पर होता है। अमेरिका को चिंता है कि पेइचिंग टेस्ट ब्लास्ट्स के लिए बनाई गई ‘जीरो ईल्ड’ की संधि का उल्लंघन कर सकता है। इसके पीछे 2019 में लोप नुर न्यूक्लियर टेस्ट साइट पर चीन की गतिविधियां एक बड़ा कारण है।
चीन ने ब्लॉक किया डेटा ट्रांसमिशन : हालांकि, इस रिपोर्ट में इस बात का कोई सबूत नहीं दिया गया है कि चीन ने कोई परीक्षण किया है। जहां तक चीन की ओर से पारदर्शिता छिपाने की बात है, उसकी ओर से इंटरनेशनल एजेंसी के मॉनिटरिंग सेंटर से जुड़े सेंसर्स से आने वाले डेटा ट्रांसमिशन को ब्लॉक किया गया। यह एजेंसी ही इस बात को सुनिश्चित करती थी कि न्यूक्लिर टेस्ट एक्सप्लोजन पर प्रतिबंध लगाए जाने के समझौते का पालन किया जा रहा है या नहीं। इस बारे में वॉशिंगटन में चीन की एंबेसी की ओर से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिली।
आर्म्स कंट्रोल अकॉर्ड में लाने की कोशिश : 1996 में कॉम्प्रिहेन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी को इसलिए बनाया गया था ताकि न्यूक्लियर हथियारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ने इस पर साइन किए लेकिन चीन ने बिना साइन किए इसका पालन करने का दावा किया। इस समझौते के कानून बनने के लिए 44 और देशों का इसको साइन करना जरूरी है।