2 घंटे तक होती है तैयारी और झटके में फंदे पर झूल जाता है मुजरिम 

निर्भया केस…कल होगी फांसी? जल्लाद की जुबानी जानें- अंदर की कहानी

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नई दिल्ली. एन पी न्यूज 24 – निर्भया के गुनहगारों का आखिरी वक्त करीब आ चुका है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो उन चारों को 20 मार्च को फांसी की सजा दी जाएगी. इस काम को अंजाम देने के लिए पवन जल्लाद पहले ही मेरठ से दिल्ली पहुंच चुके हैं। पवन जल्लाद ने  बताया  कि फांसी घर में फांसी से पहले इशारों में क्या बात की जाती है और उसके बाद मुजरिम को फांसी के फंदे पर पहुंचाया जाता है।इसके पहले, फांसी की तारीख तय होते ही हमें जेल में बुलाया जाता है। फांसी देने के पहले यह सब प्लान किया जाता है कि कैदी के पैर कैसे बांधने हैं, रस्सी कैसी बांधनी हैं। करीब 15 मिनट पहले फांसी घर के लिए चल देते हैं  फांसी की तैयारी करने में भी एक से डेढ़ घंटा लगता है। फांसी घर लाने से पहले कैदी के हाथ में हथकड़ी डाल दी जाती है, नहीं तो हाथों को पीछे कर रस्सी से बांध दिया जाता है। फांसी देते समय 4-5 सिपाही होते हैं, वह कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा करते हैं। वह कुछ भी बोलते नहीं हैं, केवल इशारों से काम होता है। कैदी को खड़े करने की जगह पर एक गोल निशान बनाया जाता है, जिसके अंदर कैदी के पैर होते हैं।

अंतिम इच्छा व्यक्त करने का आखइरी मौका
फांसी से पहले मुजरिम को 14 दिन का वक़्त दिया जाता है ताकि वो चाहें तो अपने परिवार वालों से मिल लें और मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर ले. जेल में उनकी काउंसलिंग भी की जाती है। अगर क़ैदी अपनी विल तैयार करना चाहता है तो इसके लिए उसे इजाज़त दी जाती है. इसमें वो अपनी अंतिम इच्छा लिख सकता है। अगर मुजरिम चाहता है कि उसकी फांसी के वक़्त वहां पंडित, मौलवी या पादरी मौजूद हो तो जेल सुपरिंटेंडेंट इसका इंतज़ाम कर सकते हैं।

फिर आता है वह पल
मुजरिम को फांसी के तख्ते की तरफ़ ले जाया जाता है, उस वक़्त डेप्युटी सुपरिटेंडेंट, हेड वॉर्डन और छह वॉर्डन उसके साथ होते हैं। दो वॉर्डन पीछे चल रहे होते हैं, दो आगे और एक-एक तरफ़ से मुजरिम की बांह पकड़ी जाती है।मुजरिम फांसी वाली जगह पहुंचता है, जहां सुपरिटेंडेंट, मैजिस्ट्रेट और मेडिकल ऑफ़िसर पहले से मौजूद होते हैं। सुपरिटेंडेंट, मैजिस्ट्रेट को बताता है कि उन्होंने क़ैदी की पहचान कर ली है और उसे वॉरंट उसकी मातृभाषा में पढ़कर सुना दिया है। क़ैदी को फिर हैंगमैन (जल्लाद) के हवाले कर दिया जाता है। अब अपराधी को फांसी के तख्ते पर चढ़ना होता है और उसे फांसी के फंदे के ठीक नीचे खड़ा किया जाता है, उस वक़्त तक वॉर्डन उसकी बांहें पकड़कर रखते हैं। इसके बाद जल्लाद उसके दोनों पैर टाइट बांध देता है और उसके चेहरे पर नक़ाब डाल देता है, फिर उसे फांसी का फंदा पहनाया जाता है। जिन्होंने बाहें पकड़ रखी थी, अब वो वॉर्डन पीछे हो जाते हैं।

-जैसे ही जेल सुपरिटेंडेंट इशारा करते हैं, हैंगमैन (जल्लाद) लीवर को खींच देता है।
-इससे मुजरिम जिन दो फट्टों पर खड़ा होता है, वो नीचे वेल में गिर जाते हैं और मुजरिम फंदे से लटक जाता है
-रस्सी से मुजरिम की गर्दन जकड़ जाती है और धीरे-धीरे वह मर जाता है
-बॉडी आधे घंटे तक लटकती रहती है, आधे घंटे के बाद डॉक्टर उसे मरा हुआ घोषित कर देता है
-उसके बाद उसकी बॉडी को उतार लिया जाता है और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है
-हर फांसी के तुरंत बाद सुपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर जनरल को रिपोर्ट देता है, फिर वो वॉरंट उस कोर्ट को वापस लौटा देते हैं, जिसने ये जारी किया था
-पोस्टमॉर्टम के बाद मुजरिम की बॉडी परिवार वालों को सौंप दी जाती है
-अगर कोई सुरक्षा कारण है तो जेल सुपरिटेंडेंट की मौजूदगी में शव को जलाया या दफ़नाया जाता है
-यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि फांसी की सज़ा पब्लिक हॉलीडे यानी सरकारी छुट्टी के दिन नहीं होती

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