भारतीय बाजार में इत्र ने तय किया है लंबा सफर

0

नई दिल्ली : एन पी न्यूज 24 –   इत्र पुराने जमाने में राजसी घरानों को महकाने से लेकर आज के दौर में छोटी बोतलों में बंद होकर बाजारों में बिक रहा है। खुशबू बिखेरने वाले इत्र, डियोडोरेंट और अन्य सस्ती सुगंधियों ने अब तक लंबा सफर तय किया है।

नीरो परफ्यूम स्टूडियो की संस्थापक नियति पुरोहित ने आईएएनएस लाइफ से कहा, “शुरुआत में परफ्यूम केवल राजसी घरानों के लोगों के लिए होता था, क्योंकि उसे बनाने का तरीका काफी महंगा होता था। उदाहरण के तौर पर एक लीटर चमेली के तेल के लिए एक टन चमेली के फूलों की जरूरत होती थी।”

उन्होंने आगे कहा, “200 साल पहले कृत्रिम तत्वों की खोज के बाद आम लोगों को इस क्षेत्र में व्यवसाय करने में आसानी होने लगी। तब जाकर आम लोग भी इसे खरीदने लगे और परफ्यूम उद्योग में प्रयोग और विभिन्न तरह की खुशबुओं के इजाद से इस उद्योग को बढ़ावा मिला।”

भारत ने मुगल साम्राज्ञी नूरजहां के बाद शायद ही किसी अन्य को परफ्यूम को आगे बढ़ाने वाले के तौर पर देखा होगा, लेकिन अब इस क्षेत्र में उद्यम की कोई कमी नहीं है। नियति पुरोहित ने भी नीरो परफ्यूम स्टूडियो की स्थापना इसलिए की थी, ताकि लोग खुशबू का आनंद ले सकें और उसे ताउम्र तक याद रख सकें।

हालांकि अब इत्र लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बनने लगा है। इस पर नियति का कहना है कि लोगों के नजरिए में इसके प्रति काफी बदलाव आया है।

उन्होंने कहा, “लोग अब अपने व्यक्तित्व को परफ्यूम के जरिए उजागर करने लगे हैं। उन्हें अब इस बात का ख्याल रहता है कि उन्हें कार्यालय में किस तरह का परफ्यूम लगाकर जाना चाहिए या फिर शाम के दौरान बाहर निकलने या किसी आयोजन के दौरान किस परफ्यूम का चयन करना चाहिए।”

उन्होंने आगे बताया, “युवा पेशेवर हल्की खुशबू वाले परफ्यूम पसंद करते हैं, जैसे हल्का एक्वाटिक । भारतीय बाजारों में भी ऐसे ही परफ्यूम की बहुलता है।”

वहीं, लोगों को सही परफ्यूम का चयन करने को लेकर नियति ने मौसम को ध्यान में रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “मौसम के अनुसार भी खुशबुओं के स्वाद को वरीयता दी जा सकती है। जैसे गर्मियों में आप एक हल्का, साइट्रस परफ्यूम चुनते हैं, जबकि सर्दियों में आप वार्म, स्पाइसर परफ्यूम का चयन करते हैं, और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां हैं, और कहां जाने वाले हैं।”

Leave A Reply

Your email address will not be published.