ऋषितूल्य व्यक्तियों का सम्मान भारतीय संस्कृति का प्रतीक
पद्मभूषण डॉ. विजय भटकर के विचार: एमआइटी में आयोजित शारदा ज्ञानपीठम का ४४ वा तपस्वीपूजन समारोह
पुणे : एन पी न्यूज 24 – सबसे पुरानी भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है. इसीलिए ऋषितूल्य व्यक्तियों का आज भी यहां सम्मान किया जाता है. २१वीं संदीं में यूरोप में, शादी की संकल्पना खत्म होने से उनके यहां से परिवार की प्रणाली ध्वस्त हो गई है. ऐेस समय भारत में ऋषितूल्य जैसे व्यक्तियों का सम्मान होना यह भारतीय संस्कृति का प्रतीक है. ऐसे विचार विश्व प्रसिद्ध कंप्यूटर विशेषज्ञ पद्म भूषण डॉ विजय भाटकर ने रखे.
ऋषि पंचमी के अवसर पर, शारदा ज्ञानपीठ की ४४ वीं वर्षगांठ पर,एमआइटी वर्ल्ड पीस युनिवर्सिटी और शारदा ज्ञान पीठम की ओर से विविध क्षेत्र के ८२ ते १०२ आयु के ११ तपस्वियों को सम्मानित किया गया.उस समय मुख्य अतिथि के रूप में वे बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआइटी वर्ल्ड पीस युनिवर्सिटी के संस्थापकअध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई. सम्मानित अतिथि के रूप में पुणे क्षेत्र के सह-धर्मार्थ आयुक्त दिलीप देशमुख उपस्थित थे. साथ ही शारदा ज्ञानपीठ के संस्थापक अध्यक्ष पं. वसंतराव गाडगिल भी उपस्थित थे.
इस अवसर पर प्रज्ञा तपस्वी – परमपूज्य कर्वे गुरूजी (९१), आदर्श दान तपस्वी -दत्तात्रय गोविंद घैसास (९२), लोहमार्ग यंत्रणा तपस्वी – गजानन कृष्णा साठे (९२) ,संगीतसेवा – गानवर्धन तपस्वी- कृष्ण गोपाल धर्माधिकारी (८५), अक्षर-वाड्मय तपस्वी पद्माकरपंत नांदूरकर(८५), सेना-ग्राहक तपस्वी सुधाकर शंकरराव जकाते (८४), वैद्यक-दान- तपस्वी डॉ. सुरेश गोविंद घैसास(८२), रंगवल्ली तपस्वी थिटे वसन्त गंगाधर (८२), कथ्थक-नृत्य-तपस्विनी प्रभा मराठे (८२), अध्यात्म योग तपस्वी प.पू.श्रीनरेंद्रनाथ महाराज (८२)आणि कृषि -तपस्वी खंडेराव पांडुरंग गोरे (१०२) का पूजन कर उनका विशेष सम्मान किया गया.
इस मसय शॉल, पुणेरी पगडी, गणपति की तस्वीर उन्हें प्रदान की गई. साथ ही पं. वसन्तराव गाडगील लिखित पुण्याची पुण्याई पुस्तक का विमोचन किया गया. डॉ. विजय भटकर ने कहा, १३५ करोड की आबादी वाले इस देश में कुछ वर्षों के बाद, परिवार व्यवस्था, शहरों और घरों की योजना बनाना आवश्यक है। भारत, जिसे एक युवा देश माना जाता है वह अगले ३० वर्षों में बुर्जगों का देश बन जाएगा. इसलिए देश में कानून, चिकित्सा सुविधाओं जैसी अन्य चीजों पर विचार करना समय की जरूरत है. साथ ही अगली पीढी को स्कूली शिक्षा से ही इसका ज्ञान और शिक्षित करना जरूरी है. एकओर विश्व में ओल्ड ऐज होम, दिखाई देते है. लेकिन मजबूत भारतीय संस्कृति के कारण, परिवार प्रणाली बरकरार है.
डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, भारतीय संस्कृति, तत्वज्ञान और परंपरा का दर्शन ऐसे ऋषितूल्य व्यक्तियों से होल हैता है. उन्होने उम्र भर किए साधना का यह फल है. आज यहा वैश्विक सांस्कृतिका दर्शन होता है. ऋषि पंचमी को लेकर यहां पधारे कर्वे गुरूजी यह हमारे लिए सम्मान की बात है. संस्कृत भाषा यह देववाणी है. यह किसी जातीधर्म का नहीं. गुणों की पूजा ही ईश्वर सेवा है.
दिलीप देशमुख ने कहा, भारतीय संस्कृति में, गुरु को भगवान से अधिक दर्जा दिया जाता है. इसीलिए ऐसे व्यक्ति ही विश्व के मार्गदर्शक होते है. एसे व्यक्ती संस्कार बोनेवाले होने से उन्होंने संस्कृति को जीवित रखा है. सम्मान के बाद कर्वे गुरूजी ने कहा,इस सृष्टि पर एक शक्ति है, जिससे अन्य शक्तियां उत्पन होती है. इस लिए हमेशा भगवान का नामस्मरण करने पर हर पल अच्छा कार्य होगा.
डॉ. सुरेश घैसास ने कहा, अपने माता पिता से मिले संस्कारों के चलते मैने हर मरीज की चिकित्सा की. मेरा लक्ष्य यही था की हमेशा मरीज के चेहरे पर मुस्कान लाना जिसे मैने पूरा किया. प्रभा मराठे ने कहा, वर्तमान दौर में बुर्जगों को घर में डस्ट बिन कहा जाता है. ऐसे समय यह कार्यक्रम होना महत्वपूर्ण है. उसके लिए सम्मान होना मेरा भाग्य है. सुधाकर जकाते ने कहा, अपना चारित्र्य शुध्द होगा तो दुनिया आपके सामने झुकेगी. आप निस्वार्थी और इमानदारी होगी तो हर एक कार्य पूरा होगा.
पं. वसन्तराव गाडगील स्वागत पर भाषण किया. साथ ही शारदा ज्ञानपीठ्म के जरिए ऋषितूल्य व्यक्तियों का सम्मान करने का उद्देश्य बताया. कार्यक्रम का संचालन शारदा ज्ञानपीठ के निदेशक श्रद्धा गाडगिल ने किया. एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडे ने आभार माना।